Wednesday, April 27, 2011

बचपन की वोह कागज़ की कश्ती...


Dedicated to the time spent on earth till now :) :)








बारिश के पानी से समंदर तक,

छोटी चुनोतियों से बड़े बवंडर तक,

मीलों का सफ़र तै कर आई है...

बचपन की वोह कागज़ की कश्ती, काफी दूर चल आई है.



लहरों से स्थिरता, मकामों से उम्मीद,

तूफानों से साहस लिए,

अनुभवों की बुनियाद पे हमेशा कुछ नया सीखती आई है...

बचपन की वोह कागज़ की कश्ती, काफी दूर चल आई है.



बोहोत मिले राह में साथी हमसफ़र,

थोरी देर साथ चले, फिर थामी अपनी डगर,

कुछ को साथ लिए, कुछ को पीछे चोर आई है...

बचपन की वोह कागज़ की कश्ती, काफी दूर चल आई है.



मंजिल कहाँ है, मालूम नहीं,

पर पाना है उसे, इतना है यकीन,

शायद यही सोच के अब तक बदती आई है...

बचपन की वोह कागज़ की कश्ती, काफी दूर चल आई है

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